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Showing posts from February, 2020

पूर्णिमा और अमावस्या को चन्द्रमा का महत्व और उसके मानव जीवन पर प्रभाव

पूर्णिमा और अमावस्या को जिस प्रकार चंद्र की विभिन्न अवस्थाएं होती हैं उसी प्रकार पृथ्वी पर उसके प्रभाव की भिन्न-भिन्न अवस्थाएं होती हैं यह सिर्फ चंद्रमा की सफेदी तक ही सीमित ना होकर अन्य तक है जैसे आज हम बात करेंगे ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा को मन के रूप में देखा गया है। जैसे-जैसे चंद्र पूर्णिमा तक और पूर्णिमा से अमावस्या तक बढ़ता है वैसे वैसे ही पृथ्वी वासियों पर अपना मानसिक प्रभाव छोड़ता है और यह प्रभाव महसूस किया जा सकता है। मनुष्य जिस स्थिति में अर्थात जिन क्रियाकलापों में व्यस्त रहता है पूर्णिमा आने तक उसी कार्य में अत्यधिक मानसिक प्रबलता देखी जाती है इसी प्रकार अमावस्या का भी उतना ही प्रभाव व्यक्ति के मन पर देखा जा सकता है इस प्रकार हम कह सकते हैं कि चंद्र का मानसिक स्थिति से बहुत गहरा संबंध होता है जैसा कि प्राय देखा जाता है कि समुद्र में जल भी भी चंद्र की स्थिति के अनुसार ज्वार भाटा के रूप में परिवर्तन दिखाता है उसी प्रकार चंद्र का भी हमारे जीवन में इसी प्रकार का प्रभाव है। #पूर्णिमा #purnima # अमावस्या #ज्योतिष #चंद्रमा

64 योगिनियां

64 योगिनीयो के मंत्र १. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री काली नित्य सिद्धमाता स्वाहा । २. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कपलिनी नागलक्ष्मी स्वाहा ।  ३. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुला देवी स्वर्णदेहा स्वाहा । ४. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुरुकुल्ला रसनाथा स्वाहा ५. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विरोधिनी विलासिनी स्वाहा । ६. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विप्रचित्ता रक्तप्रिया स्वाहा । ७. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री उग्र रक्त भोग रूपा स्वाहा । ८. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री उग्रप्रभा शुक्रनाथा स्वाहा । ९. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री दीपा मुक्तिः रक्ता देहा स्वाहा । १०. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नीला भुक्ति रक्त स्पर्शा स्वाहा । ११. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री घना महा जगदम्बा स्वाहा । १२. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री बलाका काम सेविता स्वाहा । १३. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मातृ देवी आत्मविद्या स्वाहा । १४. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मुद्रा पूर्णा रजतकृपा स्वाहा । १५. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मिता तंत्र कौला दीक्षा स्वाहा । १६. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री महाकाली सिद्धेश्वरी स्वाहा । १७. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कामेश्वरी सर्वशक्ति स्वाहा १८. ॐ ऐं ह्री

सिद्धों द्वारा समझें योगिनियों का ज्ञान। जब सब जगह से हार जाएं तब ही ..

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सिद्धों द्वारा समझें योगिनियों का ज्ञान। जब सब जगह से हार जाएं तब ही ....

योगिनी एक दैवीय नायिका

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परंपरा योगिनी साधना को प्राथमिक महत्व देती है। इन 64 योगिनियों को "दर्शन" देने के लिए शारीरिक रूप में प्रकट होने में सक्षम होने के लिए जाना जाता है; कलियुग में भी। योगिनियों के मंडला या मंडली में, सत्व, रजस और तमस तीनों ही मौजूद हैं, लेकिन योग साधना को रजस मार्ग से करना सबसे बड़ा माना जाता है। योगिनियों की साधना करने वाला कोई कभी अकेला नहीं होता। योगिनियाँ स्वयं साधक को ज्ञान और ज्ञान देती हैं। उनका झुकाव भोगा और भौतिकवादी प्रवृत्ति की ओर भी है। बहुत बार यह पूछा जाता है कि साधु संन्यासी के पास कितनी संपत्ति है। वे कैसे भव्य आश्रमों में जीवन जीने का प्रबंधन करते हैं और लक्जरी कारों में घूमते हैं। यह पृष्ठभूमि में योगिनियों और योगिनी शक्ति की साधना है। इसलिए, अनुष्ठान में धर्म और योगिनी की तंत्र पूजा को बहुत महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। 64 योगिनियों की साधना करने से 64 कलश मिलेंगे। कौलान्तक नाथ योगिनी नायक                                                                   कौलान्तक नाथ योगिनी नायक इन दिनों जो कोई भी केवल आसन या क्रिया के कुछ रूपों को करता है, वह खुद को योग